वीर भारत न्यास : साकार होने के पहले ही दफन हो रहा एक ख्वाब
सुमन त्रिपाठी
भोपाल। भारत को वीर या महान बनाने वालों की जीवनगाथा आम जनता को बताने के लिए मध्यप्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग की अभिनव योजना वीर भारत आज तक धरातल पर नहीं उतर पाई। बीते करीब सात साल में करोड़ों का बजट आवंटित और खर्च होने के बावजूद इस योजना को अमल में लाने वाले वीर भारत न्यास का कहीं कोई वजूद नहीं है। अब तो संस्कृति विभाग ने अपनी अभिनव योजना की सूची से इसे बाहर कर दिया है। इसके बाद भी कोरड़ों का बजट आवंटन किया जा रहा है। लोग चिंतित हैं कहीं एक ख्वाब साकार होने के पहले ही दफन न हो जाए।
मध्य प्रदेश में सत्ता के झंडाबरदार जनता की गाढ़ी कमाई से वसूले गए टैक्स को किस निर्लज्जता के साथ लुटा रहे हैं, इसकी खुली झांकी संस्कृति विभाग में देखी जा सकती है। विभाग के प्रकाशनों और दस्तावेजों में दिखाए जा रहे सब्जबाग किस कदर झूठे हैं, इसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल है। संस्कृति संचालनालय को आवंटित होने वाले बजट का भौतिक सत्यापन आंखे खोल देता है। विभाग तमाम योजनाएं चलाने का दावा करता है, लेकिन हकीकत यह है कि इन योजनाओं के नाम पर सिर्फ सरकारी खजाने को लुटाया जा रहा है। ऐसी ही एक योजना वीर भारत न्यास योजना है। करीब सात साल पहले सरकार में बैठे कुछ लोगों ने एक ख्वाब देखा कि देश को महान बनाने वालों के नाम पर मध्यप्रदेश में कोई सांस्कृतिक पहल होनी चाहिए। राजा के ख्वाब को अमली जामा पहनाने की जिम्मेदारी वजीरों ने बिना किसी हिचक ओढ़ ली। इसी के साथ कल्पना हुई वीर भारत योजना की। कल्पना के मुताबिक भारत को महान या वीर बनाने वालों के जीवन की झांकी आम लोगों को दिखाने के लिए दिल्ली के अक्षरधाम या आनंदपुर साहेब के विरासत-ए-खालसा संग्रहालय की तर्ज पर भोपाल में संग्रहालय बनाया जाएगा। इसे नाम दिया गया वीर भारत योजना और इसके अमली जामा पहनाने के लिए प्रस्तावित संस्था को नाम दिया गया वीर भारत न्यास। इसे संस्कृति विभाग की इकाई स्वराज संस्थान संचालनालय से सम्बद्ध कर दिया गया।
इस ख्वाब को पूरा करने के लिए आनन फानन में उसी साल (2012-13) में सांकेतिक बजट का आवंटन भी कर दिया गया। इसके बाद ख्वाब को धरती पर उतारने की कवायद में जुटे अफसरों ने करीब 100 महान लोगों की एक सूची भी तैयार कर साहबों के सुपुर्द कर दी। इनमें धर्म, संस्कृति, ज्योतिष, गणित, विज्ञान जैसे तमाम क्षेत्रों की महान विभूतियों के नाम थे। न्यास का दफ्तर नहीं खुला लेकिन संग्राहलय के लिए डेढ़ सौ एकड़ जमीन तलाशने का काम तेज हो गया। यह बात अलग है कि फिल्मसिटी जैसी योजनाओं की तरह वीर भारत न्यास के लिए भी जमीन नहीं मिल पाई। इस योजना के लिए 2016-17 में 30 लाख रुपए के बजट का प्रावधान किया गया। इसमें से 27 लाख का आवंटन हुआ और 27 लाख खर्च भी हो गए। अगले साल 2017-18 के बजट में वीर भारत योजना के लिए नौ करोड़ रुपए का बजट प्रावधान हुआ। यह पूरी राशि आवंटित हो गई और इसमें 8 करोड़ 99 लाख की राशि खर्च भी हो गई। अगले साल वर्ष 2018-19 के बजट में वीर भारत के लिए कुल दस करोड़ का बजट आवंटित हुआ। इसमें से एक करोड़ राजस्व मद में और नौ करोड़ पूंजीगत व्यय में आवंटित किए गए। विभाग के दावों के मुताबिक दोनों मदों में पूरी आवंटित राशि खर्च हो गई। इस साल (2019-20) के बजट में वीर भारत के लिए करीब साढ़े चार करोड़ का बजट आवंटित किया गया है।
संस्कृति विभाग के सूत्रों का कहना है कि वीर भारत न्यास या वीर भारत योजना को अभी अमली जामा नहीं पहनाया जा सका है। इसलिए इसका वजूद धरातल पर नहीं दिखाई पड़ रहा है। लेकिन कोई यह नहीं बता पा रहा है कि फिर करोड़ों का बजट कहां खर्च हो गया। वीर भारत न्यास का जिक्र संस्कृति विभाग के वार्षिक प्रतिवेदनों में अभिनव योजना वाले भाग में रहता था। विभाग ने अपने 2018-19 के प्रतिवेदन के अभिनव योजना वाले हिस्से से वीर भारत न्यास का जिक्र भी हटा दिया है। जबकि स्वराज संस्थान संचालनालय की अन्य योजनाओं और कार्यक्रमों का जिक्र हर बार की तरह किया गया है। इस तरह एक ख्वाब शायद जनता की गाढ़ी कमाई डकारने के बाद साकार होने के पहले ही दफन हो रहा है।